दो अश्क मोहब्बत के आंखों में समाये हैं ।
माना के मुलाकातों का वक्त नहीं आया
हर रात को ख़्वाबों में तशरीफ वो लाये हैं ।
इनकार की आदत तो दिलबर को नहीं मेरे
ये बात अलग है कि वादे न निभाये हैं ।
करते थे कभी उन की सूरत से बहुत बातें
कैसे कह दें हमने वो लम्हे गंवाए हैं ।
रू-ब-रू कभी उन का दीदार न कर पाये
बे-परदा खलिश आख़िर मय्यत पे वो आए हैं ।
इनकार की आदत तो दिलबर को नहीं मेरे
ReplyDeleteये बात अलग है कि वादे न निभाये हैं ।
बहोत खूब सुंदर लिखा है जारी रहे...............