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Thursday, October 30, 2008

यह मुमकिन नहीं



भूल जाऊं उन्हें अब यह मुमकिन नहीं
चाहे वो भूल जाए मुझे, कोई बात नहीं...

दिल में से उन्हें निकलना मुमकिन नहीं
चाहे वो मुझे दिल से निकाल दे कोई बात नहीं...

यादों में से पल भर के लिए निकाल पाता नहीं
चाहे वो मुझे याद न करे कभी कोई बात नहीं...

नही समझा सकुंगा कभी उन्हें दिल का हाल मैं
चाहे वो समझ के ना समझ बने कोई बात नहीं..

दिल से चाहा उन्हें और चाहता ही रहूंगा
चाहे उनके लिए मेरी चाहत की कोई कीमत नहीं...

Friday, October 17, 2008

कुछ हम को ज़माने ने वो गीत सुनाये हैं

कुछ हम को ज़माने ने वो गीत सुनाये हैं
दो अश्क मोहब्बत के आंखों में समाये हैं ।

माना के मुलाकातों का वक्त नहीं आया
हर रात को ख़्वाबों में तशरीफ वो लाये हैं ।

इनकार की आदत तो दिलबर को नहीं मेरे
ये बात अलग है कि वादे न निभाये हैं ।

करते थे कभी उन की सूरत से बहुत बातें
कैसे कह दें हमने वो लम्हे गंवाए हैं ।

रू-ब-रू कभी उन का दीदार न कर पाये
बे-परदा खलिश आख़िर मय्यत पे वो आए हैं ।

Monday, October 13, 2008

मेरा गम है मेरा हम सफर

मेरा गम है मेरा हम सफर, क्यों गम से मुझ को निजात हो
जब दोस्ती मुझे गम से है, तो खुशी से क्यों मुलाक़ात हो।

मैंने जो भी चाहा न मिल सका, मुझे इस का कुछ न मलाल है
मेरे दिल में जब हसरत नहीं, क्यों ख्वाहिशों की बात हो।

कोई रेशमी आँचल मिले, न लिखा था मेरे नसीब में
मेरा इश्क ही नाकाम था, गम की न क्यों बरसात हो।

मुझे ज़िंदगी से गिला नहीं, जो लिखा था मुझको वो मिला
मुझे हाल अपना कबूल है, चाहे ज़िंदगी सियाह रात हो।

है इसी में इश्क की आबरू, कि मिटा दे अपने वजूद को
वो रहें सलामत गो खलिश, गम-ऐ-इश्क में बरबाद हो।

Saturday, October 11, 2008

घुघुती घुरोण लगी म्यार मैंता की

नरेन्द्र सिंह नेगी जी का एक बेहतरीन बिरह गीत जो घुघूती पक्षी को माध्यम बना कर लिखा गया है। यह यह गढ़वाली गीत सदाबहार और बहुत ही मधुर है ।

घुघुती घुरोण लगी म्यार मैंता की
बौडी बौडी ए गी ऋतू , ऋतू चैत की
ऋतू , ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चैत की........

डंडीयों खीलाना होला, बुरोंसी का फूल
पथियुं हैसणी होली, फ्योली मूल मूल
डंडीयों खीलाना होला, बुरोंसी का फूल
पथियुं हैसणी होली, फ्योली मूल मूल
कुलारी फुल्पाती लेकी, देल्हियुं देल्हियुं जाला
कुलारी फुल्पाती लेकी, देल्हियुं देल्हियुं जाला
दगडया भाग्यान थाडया, चौपाल लागला
घुगुती घुरोण लगी हो ........................

घुघुती घुरोण लगी म्यार मैंता की
बौडी बौडी ए गी ऋतू, ऋतू चैत की
ऋतू, ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चैत की
तीबारी मा बैठ्या हवाला, बाबाजी उदास
बाटु हेनी होली माँ जी, लगी होली सास
तीबारी मा बैठ्या हवाला, बाबाजी उदास
बाटु हेनी होली माँ जी, लगी होली सास
कब म्यार मैती औजी, देसा भेंटी आला
कब म्यार मैती औजी, देसा भेंटी आला
कब म्यारा भाई बहनो की, राजी खुशी ल्याला
घुगुती घुरोण लगी हो.................................

घुगुती घुरोण लगी म्यारा मैंता की
बौडी बौडी एगी ऋतू, ऋतू चैत की
ऋतू, ऋतू चैत की ऋतू , ऋतू चैत की

Tuesday, October 7, 2008

पुराण और कुरान


कुछ लोग पुराण को जानते हैं,
कुछ सिर्फ़ कुरान को मानते हैं ।
कुछ राम रहीम की दोनों में,
एकल सूरत पहचानते हैं ।

कुछ जात से बाहर करते हैं,
कुछ हैं फतवों से डरते हैं ।
कुछ लोग पण्डित, मुल्ला,
दोनों से नफ़रत करते हैं ।

कुछ जोत जलाएं मूरत पर,
कुछ भड़कें अल्लाह सूरत पर ।
कुछ सूफी ध्यान लगाते हैं,
ऊपर वाले की सीरत पर ।

हिन्दू मुस्लिम दो भाई हैं
वो एक खुदा के बन्दे है।
सब उन को सियासत-दानों के,
लड़वाने के हथकंडे है ।


किस्मत का दस्तूर निराला होता है


कटती नहीं है ग़म की रात,
ये ठहर गई है क्या ?
नींद तो खैर सो गई,
मौत भी मर गई है क्या ?
जलते हैं अरमान,
मेरा दिल रोता है ।
किस्मत का दस्तूर निराला होता है ।

कौन मेरे टूटे दिल की फरयाद सुने ,
आज मेरी तकदीर का मालिक सोता है ।
आई ऐसी मौज़ कि साहिल छूट गया,
वरना अपनी कश्ती कौन डुबोता है ।
किस्मत का दस्तूर निराला होता है ।

इस रिश्ते का क्या नाम दूँ

जब लोग मुझसे पूछते हैं कि ,
क्या लगती थी वो तेरी जो रब्ब को प्यारी हो गई ?
क्यों रोता है उसकी यादों में ?
क्यों गुमसुम रहता है ?
क्यों उखड़ जाता है बातों में ?
क्यों करता है रब्ब से दुश्मनी ? ...

इस रिश्ते का क्या नाम दूँ ??
दोस्ती है यह ,
न मोहब्बत है यह ,
न चाहत है यह ,
न दिल्लगी है यह .....

बस यह रिश्ता जो सजदा है एक दुसरे का ,
पूजा है एक दुसरे की ,
दुआ है एक दुसरे की....

Wednesday, October 1, 2008

इंटरनेट के पृष्ठों पर राज करती हिन्दी

वे दिन अब लद चुके हैं, जब हम किसी सायबर कैफे में बैठे-बैठे मातृभाषा हिंदी की कोई बेबसाइट ढ़ूंढते रह जाते थे; और तब कोई साइट तो दूर जगत्-जाल यानी इंटरनेट पर हिंदी की दो-चार पंक्तियाँ पढ़ पाने की साध भी पूरी नहीं हो पाती थी । अब जगत्-जाल पर हिंदी की दुनिया दिन-प्रतिदिन समृद्ध होती जा रही है ..................
पूरा पढ़ने के लिये निम्नलिखित लिंक पर जायें यह लेख जयप्रकाश मानस जी ने लिखा है अपनी बात