कुछ हम को ज़माने ने वो गीत सुनाये हैं

कुछ हम को ज़माने ने वो गीत सुनाये हैं दो अश्क मोहब्बत के आंखों में समाये हैं । माना के मुलाकातों का वक्त नहीं आया हर रात को ख़्वाबों में तशरीफ वो लाये हैं । इनकार की आदत तो दिलबर को नहीं मेरे ये बात अलग है कि वादे न निभाये हैं । करते थे कभी उन की सूरत से बहुत बातें कैसे कह दें हमने वो लम्हे गंवाए हैं । रू-ब-रू कभी उन का दीदार न कर पाये बे-परदा खलिश आख़िर मय्यत पे वो आए हैं ।