मेरा गम है मेरा हम सफर

मेरा गम है मेरा हम सफर, क्यों गम से मुझ को निजात हो जब दोस्ती मुझे गम से है, तो खुशी से क्यों मुलाक़ात हो। मैंने जो भी चाहा न मिल सका, मुझे इस का कुछ न मलाल है मेरे दिल में जब हसरत नहीं, क्यों ख्वाहिशों की बात हो। कोई रेशमी आँचल मिले, न लिखा था मेरे नसीब में मेरा इश्क ही नाकाम था, गम की न क्यों बरसात हो। मुझे ज़िंदगी से गिला नहीं, जो लिखा था मुझको वो मिला मुझे हाल अपना कबूल है, चाहे ज़िंदगी सियाह रात हो। है इसी में इश्क की आबरू, कि मिटा दे अपने वजूद को वो रहें सलामत गो खलिश, गम-ऐ-इश्क में बरबाद हो।