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Saturday, December 27, 2008

उस पार न जाने क्या होगा!



इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का,

लहरालहरा यह शाखाएँ कुछ शोक भुला देती मन का,

कल मुर्झाने वाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रहो,

बुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनाती यौवन का,

तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो,

उस पार मुझे बहलाने का उपचार न जाने क्या होगा!

इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा ......