गणेशजी की दुर्गति… क्या यही है भक्ति और श्रद्धा !!
मुंबई में गणेश उत्सव के बाद गणेश की मूर्तियों का क्या हाल होता है ! भक्ति और श्रद्धा गई भाड़ में, उत्सव मना लिया और हमारा फर्ज खत्म !

गणेश विसर्जन के दिन तक जिस तरह भक्तों में भगवान के लिए प्रेम उमड़ता है, उसका नतीजा ये होता है ! क्या इसलिए भगवान के प्रति इतना प्रेम दिखाया जाता है ?
मूर्तियां भगवान का एक रूप हैं या बस पत्थर-मिट्टी ! अगर उन्हें कूड़े के ढेर पर ही फेंकना होता है, तो इतना सब करने की जरूरत ही क्या है !
क्या आप वाकई चाहते हैं कि इस तरह आपके भगवान को बुल्डोजर घसीट कर दूर फेंक दे ? बस यही सम्मान है !
जिस गणपति बप्पा को बुलाने के लिए हम दिन रात उन्हें याद करते हैं, उन्हें इसलिए बुलाया जाता है?
यह मूर्ति क्या आपको नहीं कह रही है इस हालत पर भगवान भी रोते होंगे? पूछते होंगे अपने भक्तों से.. ये गत करने के लिए जल्दी बुलाते हो मुझे।

इन सवालों के जवाब हमें खुद से मांगने होंगे। बात सिर्फ इन पत्थर-मिट्टी की मूर्तियों की नहीं, हमारी सोच की है। श्रद्धा की है। भक्ति की है।
इसके अतिरिक्त एक पहलू और भी है। पत्थर-मिट्टी की ये मूर्तियाँ हर साल बनाई जाती हैं और यों ही नदी व समुद्र में विसर्जित कर दी जाती हैं। इनके निर्माण में कैमिकल आदि नुकशानदेह पदार्थों का प्रयोग होता है जिससे नदी व समुद्र के वातावरण को भी बहुत नुकशान होता है, सफाई के दौरान इन विसर्जित मूर्तियों से उत्पन्न कूड़े से जमीन पर भी पर्यावरण दुषित हो जाता है।
मैं ये नहीं कहता कि मूर्तियाँ का निर्माण बन्द हो बल्कि मैं तो ये मानता हूँ कि मूर्तियों को अपने घर में स्थापित कर उनकी पूजा करनी चाहिए नकि उपरोक्त ढंग से दुर्गति, यही सच्ची श्रद्धा व भक्ति होगी।
अंत में यही कहूँगा कि ये तो केवल एक मुद्दा है ऐसे अनेक मुद्दे हैं जहाँ हमें लकीर के फकीर न हो कर खुले दिमाग से सोचने व चिंतन करने की जरूरत है। इस मुद्दे पर आप लोगों की राय जानने के लिए उत्सुकता बनी रहेगी ।
गजेन्द्र सिंह बिष्ट

गणेश विसर्जन के दिन तक जिस तरह भक्तों में भगवान के लिए प्रेम उमड़ता है, उसका नतीजा ये होता है ! क्या इसलिए भगवान के प्रति इतना प्रेम दिखाया जाता है ?





इन सवालों के जवाब हमें खुद से मांगने होंगे। बात सिर्फ इन पत्थर-मिट्टी की मूर्तियों की नहीं, हमारी सोच की है। श्रद्धा की है। भक्ति की है।
इसके अतिरिक्त एक पहलू और भी है। पत्थर-मिट्टी की ये मूर्तियाँ हर साल बनाई जाती हैं और यों ही नदी व समुद्र में विसर्जित कर दी जाती हैं। इनके निर्माण में कैमिकल आदि नुकशानदेह पदार्थों का प्रयोग होता है जिससे नदी व समुद्र के वातावरण को भी बहुत नुकशान होता है, सफाई के दौरान इन विसर्जित मूर्तियों से उत्पन्न कूड़े से जमीन पर भी पर्यावरण दुषित हो जाता है।
मैं ये नहीं कहता कि मूर्तियाँ का निर्माण बन्द हो बल्कि मैं तो ये मानता हूँ कि मूर्तियों को अपने घर में स्थापित कर उनकी पूजा करनी चाहिए नकि उपरोक्त ढंग से दुर्गति, यही सच्ची श्रद्धा व भक्ति होगी।
अंत में यही कहूँगा कि ये तो केवल एक मुद्दा है ऐसे अनेक मुद्दे हैं जहाँ हमें लकीर के फकीर न हो कर खुले दिमाग से सोचने व चिंतन करने की जरूरत है। इस मुद्दे पर आप लोगों की राय जानने के लिए उत्सुकता बनी रहेगी ।
गजेन्द्र सिंह बिष्ट
khule dimaag se sochna bahut jaroori..
ReplyDeleteबेहतरीन मननशील लेख ! इस परिश्रम पूर्ण लेखन के लिए शुभकामनायें, काश कुछ सीख पायें !
ReplyDeleteशायद यह देखने के लिए कम ही लोग आंखें खुली रखते हैं. आपके सरोकार के साथ.
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