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Saturday, December 27, 2008

उस पार न जाने क्या होगा!



इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का,

लहरालहरा यह शाखाएँ कुछ शोक भुला देती मन का,

कल मुर्झाने वाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रहो,

बुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनाती यौवन का,

तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो,

उस पार मुझे बहलाने का उपचार न जाने क्या होगा!

इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा ......

2 comments:

  1. Atyant sundar bisht ji,ek uchch stariya sahityik rachna,isi prakar likhte rahen. aapki kavita ne hridaya ko chhoo liyaa. maa saraswati sadev aap par isi prakar kripalu rahe.
    Sanjeev Mishra
    Kenya
    www.trashna.blogspot.com

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर प्रेमाभिव्यक्ति

    ---
    चाँद, बादल और शाम
    http://prajapativinay.blogspot.com/

    ReplyDelete

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