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Showing posts from 2008

नववर्ष की शुभ कामनाएं

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साल नया है बात नई हो हर दिन ओर हर रात नई हो नये हो वादे नयी हो बाते नये संकल्प हो नये इरादे नया जोश हो नई किरण हो जीने की इक नयी उमंग हो आओ भूले बीते कल को दुखो के उस भीषण जंगल को साँस नया है आस नया हो जीवन मे विश्वास नया हो राहो मे हम साथ साथ हो कदम हमारे मंजिल पर हो

उस पार न जाने क्या होगा!

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इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरालहरा यह शाखाएँ कुछ शोक भुला देती मन का, कल मुर्झाने वाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रहो, बुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनाती यौवन का, तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो, उस पार मुझे बहलाने का उपचार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा ......

तेरी आहट

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ज़ख्म मुस्कुराते हैं अब भी तेरी आहट पर, दर्द भूल जाते हैं अब भी तेरी आहट पर । शबनमी सितारौं पर फूल खिलने लगते हैं, चाँद मुस्कुराता है अब भी तेरी आहट पर । उमर काट दी लेकिन बचपना नहीँ जाता, हम दिए जलाते हैं अब भी तेरी आहट पर । तेरी याद आए तो नींद जाती रहती है, हम खुशी मानते हैं अब भी तेरी आहट पर । अब भी तेरी आहट पर चाँद मुस्कुराता है, ख्वाब गुनगुनाते हैं अब भी तेरी आहट पर । तेरे हिज्र में हम पर इक अजब तारी है, चोंक चोंक जाते हैं अब भी तेरी आहट पर । अब भी तेरी आहट पर आस लौट आती है, अश्क हम बहाते हैं अब भी तेरी आहट पर ।

हाल-ए-दिल

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कौन इस राह से गुज़रता है दिल यूं ही इंतज़ार करता है देख कर भी न देखने वाले दिल तुझे देख देख डरता है शहर-ए-गुल में कटी है सारी रात देखिए दिन कहाँ गुज़रता है ध्यान की सीढियों पे पिछले पहर कोई चुपके से पांव धरता है दिल तो मेरा उदास है नासिर शहर क्यूँ साएँ साएँ करता है नासिर काज़मी

माँ का रुप यह भी

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माँ का रुप यह भी ............................ ===

यह मुमकिन नहीं

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भूल जाऊं उन्हें अब यह मुमकिन नहीं चाहे वो भूल जाए मुझे, कोई बात नहीं... दिल में से उन्हें निकलना मुमकिन नहीं चाहे वो मुझे दिल से निकाल दे कोई बात नहीं... यादों में से पल भर के लिए निकाल पाता नहीं चाहे वो मुझे याद न करे कभी कोई बात नहीं... नही समझा सकुंगा कभी उन्हें दिल का हाल मैं चाहे वो समझ के ना समझ बने कोई बात नहीं.. दिल से चाहा उन्हें और चाहता ही रहूंगा चाहे उनके लिए मेरी चाहत की कोई कीमत नहीं...

कुछ हम को ज़माने ने वो गीत सुनाये हैं

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कुछ हम को ज़माने ने वो गीत सुनाये हैं दो अश्क मोहब्बत के आंखों में समाये हैं । माना के मुलाकातों का वक्त नहीं आया हर रात को ख़्वाबों में तशरीफ वो लाये हैं । इनकार की आदत तो दिलबर को नहीं मेरे ये बात अलग है कि वादे न निभाये हैं । करते थे कभी उन की सूरत से बहुत बातें कैसे कह दें हमने वो लम्हे गंवाए हैं । रू-ब-रू कभी उन का दीदार न कर पाये बे-परदा खलिश आख़िर मय्यत पे वो आए हैं ।

मेरा गम है मेरा हम सफर

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मेरा गम है मेरा हम सफर, क्यों गम से मुझ को निजात हो जब दोस्ती मुझे गम से है, तो खुशी से क्यों मुलाक़ात हो। मैंने जो भी चाहा न मिल सका, मुझे इस का कुछ न मलाल है मेरे दिल में जब हसरत नहीं, क्यों ख्वाहिशों की बात हो। कोई रेशमी आँचल मिले, न लिखा था मेरे नसीब में मेरा इश्क ही नाकाम था, गम की न क्यों बरसात हो। मुझे ज़िंदगी से गिला नहीं, जो लिखा था मुझको वो मिला मुझे हाल अपना कबूल है, चाहे ज़िंदगी सियाह रात हो। है इसी में इश्क की आबरू, कि मिटा दे अपने वजूद को वो रहें सलामत गो खलिश, गम-ऐ-इश्क में बरबाद हो।

घुघुती घुरोण लगी म्यार मैंता की

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नरेन्द्र सिंह नेगी जी का एक बेहतरीन बिरह गीत जो घुघूती पक्षी को माध्यम बना कर लिखा गया है। यह यह गढ़वाली गीत सदाबहार और बहुत ही मधुर है । घुघुती घुरोण लगी म्यार मैंता की बौडी बौडी ए गी ऋतू , ऋतू चैत की ऋतू , ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चैत की........ डंडीयों खीलाना होला, बुरोंसी का फूल पथियुं हैसणी होली, फ्योली मूल मूल डंडीयों खीलाना होला, बुरोंसी का फूल पथियुं हैसणी होली, फ्योली मूल मूल कुलारी फुल्पाती लेकी, देल्हियुं देल्हियुं जाला कुलारी फुल्पाती लेकी, देल्हियुं देल्हियुं जाला दगडया भाग्यान थाडया, चौपाल लागला घुगुती घुरोण लगी हो ........................ घुघुती घुरोण लगी म्यार मैंता की बौडी बौडी ए गी ऋतू, ऋतू चैत की ऋतू, ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चैत की तीबारी मा बैठ्या हवाला, बाबाजी उदास बाटु हेनी होली माँ जी, लगी होली सास तीबारी मा बैठ्या हवाला, बाबाजी उदास बाटु हेनी होली माँ जी, लगी होली सास कब म्यार मैती औजी, देसा भेंटी आला कब म्यार मैती औजी, देसा भेंटी आला कब म्यारा भाई बहनो की, राजी खुशी ल्याला घुगुती घुरोण लगी हो................................. घुगुती घुरोण लगी म्यारा मैंता की बौडी बौडी...

पुराण और कुरान

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कुछ लोग पुराण को जानते हैं, कुछ सिर्फ़ कुरान को मानते हैं । कुछ राम रहीम की दोनों में, एकल सूरत पहचानते हैं । कुछ जात से बाहर करते हैं, कुछ हैं फतवों से डरते हैं । कुछ लोग पण्डित, मुल्ला, दोनों से नफ़रत करते हैं । कुछ जोत जलाएं मूरत पर, कुछ भड़कें अल्लाह सूरत पर । कुछ सूफी ध्यान लगाते हैं, ऊपर वाले की सीरत पर । हिन्दू मुस्लिम दो भाई हैं वो एक खुदा के बन्दे है। सब उन को सियासत-दानों के, लड़वाने के हथकंडे है ।

किस्मत का दस्तूर निराला होता है

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कटती नहीं है ग़म की रात, ये ठहर गई है क्या ? नींद तो खैर सो गई, मौत भी मर गई है क्या ? जलते हैं अरमान, मेरा दिल रोता है । किस्मत का दस्तूर निराला होता है । कौन मेरे टूटे दिल की फरयाद सुने , आज मेरी तकदीर का मालिक सोता है । आई ऐसी मौज़ कि साहिल छूट गया, वरना अपनी कश्ती कौन डुबोता है । किस्मत का दस्तूर निराला होता है ।

इस रिश्ते का क्या नाम दूँ

जब लोग मुझसे पूछते हैं कि , क्या लगती थी वो तेरी जो रब्ब को प्यारी हो गई ? क्यों रोता है उसकी यादों में ? क्यों गुमसुम रहता है ? क्यों उखड़ जाता है बातों में ? क्यों करता है रब्ब से दुश्मनी ? ... इस रिश्ते का क्या नाम दूँ ?? न दोस्ती है यह , न मोहब्बत है यह , न चाहत है यह , न दिल्लगी है यह ..... बस यह रिश्ता जो सजदा है एक दुसरे का , पूजा है एक दुसरे की , दुआ है एक दुसरे की....

इंटरनेट के पृष्ठों पर राज करती हिन्दी

वे दिन अब लद चुके हैं, जब हम किसी सायबर कैफे में बैठे-बैठे मातृभाषा हिंदी की कोई बेबसाइट ढ़ूंढते रह जाते थे; और तब कोई साइट तो दूर जगत्-जाल यानी इंटरनेट पर हिंदी की दो-चार पंक्तियाँ पढ़ पाने की साध भी पूरी नहीं हो पाती थी । अब जगत्-जाल पर हिंदी की दुनिया दिन-प्रतिदिन समृद्ध होती जा रही है .................. पूरा पढ़ने के लिये निम्नलिखित लिंक पर जायें यह लेख जयप्रकाश मानस जी ने लिखा है अपनी बात

I AM .......

“I who remain as God created me Would loose the world from all I thought it was. For I am real because the world is not, And I would know my own reality.” “I loose the world from all I thought it was, And choose my own reality instead.” “Truth correct all errors in my mind, And I rest in Him Who is my Self.” I Love Universe And MySelf ;}. I intend that I always remember that I am a unique being, capable of so much more than I’ve been led to believe. My mind is clear, my thinking sharp, This is Freedom, that`s its start. This Freedom of Self comes from within, I know what I want and I know who I Am. “I am strong. I command my brain. My body is my slave. I am master within my own house ;}”.

कुछ जज़्बात

कुछ जज़्बात, कुछ भावनाये, क्यूँ आती हैं उमड़ कर हौले से बिन बुलाए मेहमान की तरह रूक जाती हैं कभी कुछ कहती हैं, कभी यूँ ही खामोशी से रहती हैं एक लहर सी उछल जाती हैं, कभी तरंग बन थिरकती हैं कभी दिल के कोने में छुपी हुई पाता हूँ उन्हे कभी खुल खुलकर बरसती हैं बेईमान हो हमसे सब के सामने आकर बहती हैं, हमे भी भिगो देती है कई बार रुसवा कर देती हैं, कभी हथेली पर छोड़ जाती है खुशी के दो मोती हर रूप में उनके, कभी हमें बहा कर ले जाती हैं ………