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Saturday, August 29, 2009

कश्मीर की याद दिलाते हैं रूपकुंड के हरे मैदान



उत्तरांचल के चमोली जिले में स्थित रमणीक स्थल रूपकुंड को पर्यटन मानचित्र पर अब तक उचित स्थान नहीं मिल सका है। चमोली जिले के सीमान्त देवाल विकास खांड में समुद्र तल से १६२०० फुट की ऊंचाई पर नंदाकोट, नंदाघाट और त्रिशूल जैसे विशाल हिम पर्वत शिखरों की छांव में चट्टानों तथा पत्थरों के विस्तार के बीच फैला हुआ प्रकृति का अनमोल उपहार रूपकुंड एक ऐसा मनोरम स्थल है जो अपनी स्वास्थ्यवर्धक जलवायु, दिव्य, अनूठे रहस्यमय स्वरूप और नयनाभिराम दृश्यों के लिए जाना जाता है।

रूपकुंड की यात्रा के लिए जून उत्तरार्द्ध से सितम्बर उत्तरार्द्ध का समय सर्वोत्तम होता है क्योंकि इसके बाद इस पूरे क्षेत्र में हिमपात का सिलसिला प्रारम्भ हो जाता है जिससे पर्यटकों को यात्रा के लिए अनुकूल परिस्थितियां दुर्लभ हो जाती हैं।

प्रकृति की अनूठी कृति रूपकुंड का अवलोकन करने जाने के लिए श्रीनगर, कर्णप्रयाग तथा देवाल होते हुए भी जाया जा सकता है, लेकिन यदि ट्रैकिंग के रूप में ग्वालदम से पदयात्रा की जाए तो पर्यटक उस क्षेत्र के ग्रामीण जनजीवन, सांस्कृतिक व ऐतिहासिक विरासत तथा अनछुए स्थलों से जुड़े विशिष्ट अनुभवों से ओत–प्रोत होकर लगभग १० दिन की अवधि में रूपकुंड पहुंचता है। पर्यटक तीन दिन की पदयात्रा के प्रथम चरण में मुंदोली तथा बाण होते हुए लगभग ७० किमी की दूरी तय करने के पश्चात वेदनी बुग्याल पहुंचते हैं।


यहां मखमली हरी घास के मैदान हैं जिन्हें कश्मीर में सोनमर्ग और गुलमर्ग जैसे नामों से जाना जाता है। समुद्रतल से २४०० मीटर की ऊंचाई पर पसरा हुआ वेदनी बाग एशिया के प्रमुख विशाल बागों में से एक है। यहां पहुंचने पर पर्यटक की थकान पल भर में उड़न छू हो जाती है और वह ताजगी से सराबोर होकर अनोखी स्फूर्ति का अनुभव करता है। उसे यहां असीम सुखद आनंद की अनुभूति होती है। यह सम्पूर्ण क्षेत्र विभिन्न रंग–बिरंगे पुष्पों की अनेक प्रजातियों तथा नाना प्रकार की औषधियुक्त दुर्लभ जड़ी–बूटियों से भरा पड़ा है जहां पर्यटक को स्वतः ही स्वास्थ्य लाभ प्राप्त हो जाता है।

कहा जाता है कि वेदों की रचना यहीं पर की गई थी। यहां मौजूद एक छोटे कुंड में किया गया तर्पण पूर्वजों के लिए कल्याणकारी माना जाता है। अगले १८ किलोमीटर की पदयात्रा के बाद पर्यटक रूपकुंड के पास पहुंच जाता है। इस दिव्य कुंड की अथाह गहराई, कटोरेनुमा आकार तथा चारों ओर बिखरे नर कंकाल व वातावरण में फैले गहन निस्तब्धता से मन में कौतूहल व जिज्ञासा का ज्वार उत्पन्न हो जाता है। रूपकुंड के रहस्य का प्रमुख कारण ये नर कंकाल ही हैं जो न केवल इसके इर्द–गिर्द दिखते हैं बल्कि तालाब में इनकी परछाइयां भी दिखाई पड़ती हैं। इन अस्थि अवशेषों के विषय में क्षेत्रवासियों में अनेक प्रकार की किवदन्तियां प्रचलित हैं जिन्हें सुनकर पर्यटक रोमांचित हो उठता है। वर्षों से पुरातत्ववेत्ता व इतिहासकार इन नर कंकालों के रहस्य का पता लगाने में जुटे हैं लेकिन अब तक कोई ठोस और सर्वमान्य हल नहीं निकाल पाए हैं।

एक पौराणिक कथा के अनुसार इस रहस्मयी रूपकुंड की उत्पत्ति भगवान शिव के त्रिशूल गाड़ने से हुई थी। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर मां पार्वती के साथ कैलाश पर्वत की ओर गमन कर रहे थे तो माता पार्वती प्यास से व्याकुल हो उठीं तब शिवजी ने अपना त्रिशूल गाड़कर एक कुंड की रचना की। पार्वती जी ने अंजुलि से कुंड का जल पी कर अपनी प्यास बुझाई। जल पीते समय रूपकुंड के जल में अपने श्रंगार का प्रतिबिम्ब देखकर वे अति हर्षित हो गईं। माता पार्वती को प्रसन्नचित और प्रफुल्लित देखकर भगवान शंकर ने इस कुंड को रूपकुंड का नाम दे दिया।

पर्यटन विभाग के सौजन्य से वेदनी बाग में हर वर्ष रूपकुंड महोत्सव का आयोजन किया जाता है। वैसे तो सम्पूर्ण उत्तारांचल को प्रकृति ने अपने विपुल भण्डार से अद्भुत सौंदर्य देकर काफी समृद्ध बनाया है जिसका लुत्फ उठाने के लिए देश–विदेश के हजारों पर्यटक हर वर्ष यहां आते हैं। लेकिन मौजूदा पर्यटन स्थलों में बहुत से स्थान अछूते पड़े हैं जिनके विषय में पर्यटन विभाग सड़कों के किनारे सम्बंधित स्थलों के विवरण दर्शाते साइनबोर्ड लगाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता है, रूपकुंड भी इन्हीं में से एक है।

Tuesday, February 24, 2009

अनुपस्थिती

बहुत दिनों से मैं अपने ब्लॉग पर कुछ लिखने की कोशिष कर रहा था, परंतु कम्प्यूटर में कुछ तकनीकी बाधाएं उत्पन्न हो जाने से मैं यह कार्य संपन्न नहीं कर पा रहा हूँ। और न ही मैं अन्य ब्लॉगों परटिप्पणी लिख पा रहा हूँ। उम्मीद करता हूँ कि यह अवरोध कुछ समय में ठीक हो जाएगा।

Wednesday, December 31, 2008

नववर्ष की शुभ कामनाएं



साल नया है बात नई हो
हर दिन ओर हर रात नई हो

नये हो वादे नयी हो बाते
नये संकल्प हो नये इरादे

नया जोश हो नई किरण हो
जीने की इक नयी उमंग हो

आओ भूले बीते कल को
दुखो के उस भीषण जंगल को

साँस नया है आस नया हो
जीवन मे विश्वास नया हो

राहो मे हम साथ साथ हो
कदम हमारे मंजिल पर हो

Saturday, December 27, 2008

उस पार न जाने क्या होगा!



इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का,

लहरालहरा यह शाखाएँ कुछ शोक भुला देती मन का,

कल मुर्झाने वाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रहो,

बुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनाती यौवन का,

तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो,

उस पार मुझे बहलाने का उपचार न जाने क्या होगा!

इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा ......

Friday, November 21, 2008

तेरी आहट



ज़ख्म मुस्कुराते हैं अब भी तेरी आहट पर,
दर्द भूल जाते हैं अब भी तेरी आहट पर ।

शबनमी सितारौं पर फूल खिलने लगते हैं,
चाँद मुस्कुराता है अब भी तेरी आहट पर ।

उमर काट दी लेकिन बचपना नहीँ जाता,
हम दिए जलाते हैं अब भी तेरी आहट पर ।

तेरी याद आए तो नींद जाती रहती है,
हम खुशी मानते हैं अब भी तेरी आहट पर ।

अब भी तेरी आहट पर चाँद मुस्कुराता है,
ख्वाब गुनगुनाते हैं अब भी तेरी आहट पर ।

तेरे हिज्र में हम पर इक अजब तारी है,
चोंक चोंक जाते हैं अब भी तेरी आहट पर ।

अब भी तेरी आहट पर आस लौट आती है,
अश्क हम बहाते हैं अब भी तेरी आहट पर ।

Monday, November 17, 2008

हाल-ए-दिल



कौन इस राह से गुज़रता है
दिल यूं ही इंतज़ार करता है

देख कर भी न देखने वाले
दिल तुझे देख देख डरता है

शहर-ए-गुल में कटी है सारी रात
देखिए दिन कहाँ गुज़रता है

ध्यान की सीढियों पे पिछले पहर
कोई चुपके से पांव धरता है

दिल तो मेरा उदास है नासिर
शहर क्यूँ साएँ साएँ करता है

नासिर काज़मी

Tuesday, November 4, 2008

माँ का रुप यह भी

माँ का रुप यह भी ............................


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Thursday, October 30, 2008

यह मुमकिन नहीं



भूल जाऊं उन्हें अब यह मुमकिन नहीं
चाहे वो भूल जाए मुझे, कोई बात नहीं...

दिल में से उन्हें निकलना मुमकिन नहीं
चाहे वो मुझे दिल से निकाल दे कोई बात नहीं...

यादों में से पल भर के लिए निकाल पाता नहीं
चाहे वो मुझे याद न करे कभी कोई बात नहीं...

नही समझा सकुंगा कभी उन्हें दिल का हाल मैं
चाहे वो समझ के ना समझ बने कोई बात नहीं..

दिल से चाहा उन्हें और चाहता ही रहूंगा
चाहे उनके लिए मेरी चाहत की कोई कीमत नहीं...

Friday, October 17, 2008

कुछ हम को ज़माने ने वो गीत सुनाये हैं

कुछ हम को ज़माने ने वो गीत सुनाये हैं
दो अश्क मोहब्बत के आंखों में समाये हैं ।

माना के मुलाकातों का वक्त नहीं आया
हर रात को ख़्वाबों में तशरीफ वो लाये हैं ।

इनकार की आदत तो दिलबर को नहीं मेरे
ये बात अलग है कि वादे न निभाये हैं ।

करते थे कभी उन की सूरत से बहुत बातें
कैसे कह दें हमने वो लम्हे गंवाए हैं ।

रू-ब-रू कभी उन का दीदार न कर पाये
बे-परदा खलिश आख़िर मय्यत पे वो आए हैं ।

Monday, October 13, 2008

मेरा गम है मेरा हम सफर

मेरा गम है मेरा हम सफर, क्यों गम से मुझ को निजात हो
जब दोस्ती मुझे गम से है, तो खुशी से क्यों मुलाक़ात हो।

मैंने जो भी चाहा न मिल सका, मुझे इस का कुछ न मलाल है
मेरे दिल में जब हसरत नहीं, क्यों ख्वाहिशों की बात हो।

कोई रेशमी आँचल मिले, न लिखा था मेरे नसीब में
मेरा इश्क ही नाकाम था, गम की न क्यों बरसात हो।

मुझे ज़िंदगी से गिला नहीं, जो लिखा था मुझको वो मिला
मुझे हाल अपना कबूल है, चाहे ज़िंदगी सियाह रात हो।

है इसी में इश्क की आबरू, कि मिटा दे अपने वजूद को
वो रहें सलामत गो खलिश, गम-ऐ-इश्क में बरबाद हो।

Saturday, October 11, 2008

घुघुती घुरोण लगी म्यार मैंता की

नरेन्द्र सिंह नेगी जी का एक बेहतरीन बिरह गीत जो घुघूती पक्षी को माध्यम बना कर लिखा गया है। यह यह गढ़वाली गीत सदाबहार और बहुत ही मधुर है ।

घुघुती घुरोण लगी म्यार मैंता की
बौडी बौडी ए गी ऋतू , ऋतू चैत की
ऋतू , ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चैत की........

डंडीयों खीलाना होला, बुरोंसी का फूल
पथियुं हैसणी होली, फ्योली मूल मूल
डंडीयों खीलाना होला, बुरोंसी का फूल
पथियुं हैसणी होली, फ्योली मूल मूल
कुलारी फुल्पाती लेकी, देल्हियुं देल्हियुं जाला
कुलारी फुल्पाती लेकी, देल्हियुं देल्हियुं जाला
दगडया भाग्यान थाडया, चौपाल लागला
घुगुती घुरोण लगी हो ........................

घुघुती घुरोण लगी म्यार मैंता की
बौडी बौडी ए गी ऋतू, ऋतू चैत की
ऋतू, ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चैत की
तीबारी मा बैठ्या हवाला, बाबाजी उदास
बाटु हेनी होली माँ जी, लगी होली सास
तीबारी मा बैठ्या हवाला, बाबाजी उदास
बाटु हेनी होली माँ जी, लगी होली सास
कब म्यार मैती औजी, देसा भेंटी आला
कब म्यार मैती औजी, देसा भेंटी आला
कब म्यारा भाई बहनो की, राजी खुशी ल्याला
घुगुती घुरोण लगी हो.................................

घुगुती घुरोण लगी म्यारा मैंता की
बौडी बौडी एगी ऋतू, ऋतू चैत की
ऋतू, ऋतू चैत की ऋतू , ऋतू चैत की

Tuesday, October 7, 2008

पुराण और कुरान


कुछ लोग पुराण को जानते हैं,
कुछ सिर्फ़ कुरान को मानते हैं ।
कुछ राम रहीम की दोनों में,
एकल सूरत पहचानते हैं ।

कुछ जात से बाहर करते हैं,
कुछ हैं फतवों से डरते हैं ।
कुछ लोग पण्डित, मुल्ला,
दोनों से नफ़रत करते हैं ।

कुछ जोत जलाएं मूरत पर,
कुछ भड़कें अल्लाह सूरत पर ।
कुछ सूफी ध्यान लगाते हैं,
ऊपर वाले की सीरत पर ।

हिन्दू मुस्लिम दो भाई हैं
वो एक खुदा के बन्दे है।
सब उन को सियासत-दानों के,
लड़वाने के हथकंडे है ।


किस्मत का दस्तूर निराला होता है


कटती नहीं है ग़म की रात,
ये ठहर गई है क्या ?
नींद तो खैर सो गई,
मौत भी मर गई है क्या ?
जलते हैं अरमान,
मेरा दिल रोता है ।
किस्मत का दस्तूर निराला होता है ।

कौन मेरे टूटे दिल की फरयाद सुने ,
आज मेरी तकदीर का मालिक सोता है ।
आई ऐसी मौज़ कि साहिल छूट गया,
वरना अपनी कश्ती कौन डुबोता है ।
किस्मत का दस्तूर निराला होता है ।

इस रिश्ते का क्या नाम दूँ

जब लोग मुझसे पूछते हैं कि ,
क्या लगती थी वो तेरी जो रब्ब को प्यारी हो गई ?
क्यों रोता है उसकी यादों में ?
क्यों गुमसुम रहता है ?
क्यों उखड़ जाता है बातों में ?
क्यों करता है रब्ब से दुश्मनी ? ...

इस रिश्ते का क्या नाम दूँ ??
दोस्ती है यह ,
न मोहब्बत है यह ,
न चाहत है यह ,
न दिल्लगी है यह .....

बस यह रिश्ता जो सजदा है एक दुसरे का ,
पूजा है एक दुसरे की ,
दुआ है एक दुसरे की....

Wednesday, October 1, 2008

इंटरनेट के पृष्ठों पर राज करती हिन्दी

वे दिन अब लद चुके हैं, जब हम किसी सायबर कैफे में बैठे-बैठे मातृभाषा हिंदी की कोई बेबसाइट ढ़ूंढते रह जाते थे; और तब कोई साइट तो दूर जगत्-जाल यानी इंटरनेट पर हिंदी की दो-चार पंक्तियाँ पढ़ पाने की साध भी पूरी नहीं हो पाती थी । अब जगत्-जाल पर हिंदी की दुनिया दिन-प्रतिदिन समृद्ध होती जा रही है ..................
पूरा पढ़ने के लिये निम्नलिखित लिंक पर जायें यह लेख जयप्रकाश मानस जी ने लिखा है अपनी बात

Tuesday, September 30, 2008

I AM .......

“I who remain as God created me
Would loose the world from all I thought it was.
For I am real because the world is not,
And I would know my own reality.”
“I loose the world from all I thought it was,
And choose my own reality instead.”
“Truth correct all errors in my mind,
And I rest in Him Who is my Self.”
I Love Universe And MySelf ;}.
I intend that I always remember that I am a unique being,
capable of so much more than I’ve been led to believe.
My mind is clear, my thinking sharp,
This is Freedom, that`s its start.
This Freedom of Self comes from within,
I know what I want and I know who I Am.
“I am strong. I command my brain. My body is my slave.
I am master within my own house ;}”.

Monday, September 29, 2008

कुछ जज़्बात

कुछ जज़्बात, कुछ भावनाये, क्यूँ आती हैं
उमड़ कर हौले से बिन बुलाए मेहमान की तरह रूक जाती हैं
कभी कुछ कहती हैं, कभी यूँ ही खामोशी से रहती हैं
एक लहर सी उछल जाती हैं, कभी तरंग बन थिरकती हैं
कभी दिल के कोने में छुपी हुई पाता हूँ उन्हे
कभी खुल खुलकर बरसती हैं
बेईमान हो हमसे सब के सामने आकर बहती हैं,
हमे भी भिगो देती है कई बार रुसवा कर देती हैं,
कभी हथेली पर छोड़ जाती है खुशी के दो मोती हर रूप में उनके,
कभी हमें बहा कर ले जाती हैं ………